जैसे जैसे दिवस दर्श से आगे बढ़ते हैं और चन्द्रमा अपने आकार को प्राप्त करने लगता है..रोज़ एक टुकड़ा आकाश का धरती से कहीं खो जाता है..पूर्णा की रात्रि लोगों के ध्यान में स्थान उस चन्द्रमा की सुंदरता को मिलता है , और मेरी उदास आंखें खोजती रहती है सुदूर आकाश के खोए हुए उस टुकड़े को..