रख कर यादों को सिरहाने हर रोज़ सो जाते हैं l
रोते हैं मगर ख़ुद की आवाज़ टक न सुन पाते हैं ll
ख़ामोशी में खोकर ख़ुद ही ख़ामोश हो जाते हैं l
चुप रहकर भी मन ही मन हर बात कह जाते हैं ll
तन्हाई का आलम चुपचाप हर रोज़ सह जाते हैं l
भीड़ में होकर भी यारो अकसर तनहा हो जाते हैं ll
बहते हैं अश्क खुली आँखों से ख़्वाब सजाते हैं l
इंतज़ार की घड़ियाँ भी गिन गिन बिता जाते हैं ll
पागल प्रेमी बोल हर रोज़ ताने सुना जाते हैं l
ज़माने बाले भी कितनी कहानियाँ बना जाते हैं ll