"बंश"
पति और पत्नी की
एक मुलाकात
एक रिश्ते ने जन्म लिया
यह रिश्ता अनमोल है
आत्मा की खोज से
खुला उनके पिछले
जन्म का बही खाता।
दोनो सैसर की तरह
हंस कर जिंदगी के
कोरे कागज पर रंग भरे
जीवन की नज्मों में
बड़े प्यार से लकीरें फेरे
मिल कर ख्याहिशों की
चिलम को जलाया
अरमानों का हिमालय तैयार
करने में अपने जिगर के
लहू को मिलाया
दोनो अपनी सोच की कंघी को
रत्न की खोह में रखी
कभी भूखे रह कर सोये
कभी खुशियों के दीये जलाए
जिंदगी पवन की वेग सी
दौड़ी जा रही है
ठहर ठहर कर रत्न की
नक्कासी करते जाते
बंश बेल को ज़ुबान दी
पसीने से उसको सींचा
बंश बेल जब हिमालय की
ऊंचाई को छुआ तो
दोनो गर्व के सीने में
चढ़ कर जश्न को
मन की बाली पहनाई
और खुशी के द्वार बैठ
बंश बेल की शाखाओं को
अपने हृदय से लगा कर
ईश्वर को आभार की
एक पोटली थमाई
शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'