बीरान पड़ा सदियों पुराना मन्दिर
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बन्द पड़े मन्दिर में इक मूरत बेजान पड़ी थी l
मकड़ियों के जाले हर तरफ़ बड़ी धूल पड़ी थी ll
सूखे बुझे पड़े थे दीप और पूजन थाली एक नही थी l
चीखती सभी दिवारे भवन के भेद सारे खोल रही थी ll
पहरा नागो का हैं सरसराहटे ये बोल रही थी l
गुमसुम शांत बहती हवा हर तरफ़ गूंज रही थी ll