कोहरेसे निकलता हुवा तेरा चेहरा,
होठों को चार चाँद लगाती हुयी सुबह की लालीमा,
कुदरत का संगीत सुनाती हुई, तेरे पैंरो कि पायल।
सबकुछ छोड़के आया हुँ,
इस बेदर्दी के साँये में,
कलतक दुनियाँ को भुला था,
आज खुदको भुलने आया हुँ।
मगर ये तेरी मुझसे जुड़ी बातें, सुबह होनेही नहीं देती।