मोड़दें हवाओँका रुख क्यूँ उसे हम बहने दें
काम जो है अपने बसका क्यूँ उसे यूँ रहने दें
बदल दें किस्मत वो जो हमने लिखी हि नहीं
नहीं सुनना है वक्त को क्यूँ उसे हम कहने दें
ऊंची उन उड़ानों के लिए पंख है हौसले के
पत्तोंका कोई महल नहीं जिसे यूँ ही ढहने दें
उतार दिलका बोझ बताके मन की बात को
दिल ने गुन्हा तो किया नहीं क्यूँ उसे सहने दें
छोटी मोटी उन बातों पे दुखी हम होंगे नहीं
मोतियों से मेहँगे आँसू क्यूँ उसे हम बहने दें
Bhavesh Parmar "आर्यम्"