"एक जादूगर"
मैं हैरान परेशान था
सामने एक जादूगर
उसके पेटी का चमत्कार
पूरे हाल में पसरा था
फिर थोड़ी देर में
पूरा चमत्कार
एक पोटली बन गया
लाखों ख़्याल आये
मांथे में झिलमिलाए
मैं अडोल से खड़ा रहा
जादूगर ने पूरी पोटली
मेरे हांथो में थमाया
पोटली लेकर मैं शहर को आया
शहर की उखड़ी सरहदे
सकरी गालियां
गलियों की मुडेर में
दुर्गन्ध के कौवे
टूटे मकान झरतीं छतें
शहर के ऊंघते लोग
ढूंढता रहा महफूज़ ठिकाना
कही रख पाता मैं
यह चमत्कार की पोटली
कोई लफ्ज का एक ठेला
मेरी ओर फेंके
मेरी हो मुलाकात ज़ुबान से
मैं पूरे सफर में
यह सोचता रहा
मगर टूटते रहे तारे
बिखरती रहीं किरणें
मैं पीता रहा
अपने सफर का धुआं।
किताब-"रेंकते केकड़े" कविता संग्रह से
लेखक:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'