अपनी B.Ed. के दौरान मुझे टीचर ट्रेनिंग के लिए ब्वॉयज स्कूल की नाइंथ क्लास के दो पीरियड मिले वह भी लंच के बाद। जब लड़कों को पता चला मैं ट्रेनी हूं तो वह आधा समय आने में और बाकी किताबें निकालने में खत्म कर देते। मैंने एक दो बार उन्हें समझाने की कोशिश भी की पर कोई फायदा ना हुआ। तीसरे दिन मैं क्लास के गेट पर खड़ी हो गई और जैसे-जैसे लड़के आते गए मैं मुस्कुराकर उनका वेलकम करती रही। मेरी इस गांधीगिरी का यह असर हुआ कि सभी स्टूडेंटस अब समय पर क्लास में पहुंचने लगे। सरोज ✍️✍️ स्वरचित व मौलिक ।