कल सिरहाने रखी थी चिठ्ठी ,
जाने कहाँ गुम हो गयी।
कही तुमने पढ़कर छुपा तो न दी।
वही दो-चार शेर मैंने तारीफ के बाँधे थे।
मुझे पता है, तुम्हे तारीफ बहोत कम पसंद आती है।
इसलिए ख्वाईशों शब्द बुने थे मैंने।
वही बात पढ़ पढ़कर तुम भी जरुर तंग आ गयी हो।
पर तुम्हारी ये अदा मेरे अल्फाजों से भी खुबसुरत है।