बात उन दिनों की है,
जब मैं खामोश रहता था।
बंद आँखो में सपने बुना करता था।
आधेअधुरे शब्द मेरे
जज्बात बयान करते थे।
लब तो कुछ न कहते थे।
निगाहें जुबाँ होती थी।
अब मैं बेहतर महसूस करता हुँ।
कुदरत रंग और शख्सिंयत
में अहसास भरता हुँ।
अल्फाजों में दिवानगी इसतरह से छायी हैं।
जिंदगी इनके सहारे कटती है, वरना कहाँ किस्मत पे बन आयी है।