तुझे छू कर आई है जो हवा,
पागल मुझे बना रही, मेरा तन मन महका रही।।
दिन जो बीत जाए भले
रातें क्यूँ तड़पा रही
सोचूँ मैं एक बस तुझे
तेरी याद क्यूँ जगा रही
पागल मुझे बना रही, मेरा तन मन महका रही।।
तू नहीं तो मैं नहीं
इस दुनिया में कोई शय नहीं
हाथ की लकीरों से क्यूँ
किस्मत तुझे मिटा रही
पागल मुझे बना रही, मेरा तन मन महका रही।।
छोड़ दूँ मैं ये जहाँ
तेरा हो मैं रहूँ वहाँ
तेरी याद मुझे आ आके क्यों
मेरी धड़कनें बढ़ा रही
पागल मुझे बना रही, मेरा तन मन महका रही।।
कहीं उम्र न गुजर जाए यूँ हीं
तेरे साथ ही रहूँगी मैं हीं
मेरी धड़कनों के तार को क्यूँ
तेरी धड़कने झनझना रही
पागल मुझे बना रही, मेरा तन मन महका रही।।