सरहद पर लड़ते लड़ते..
यारों हम कुरबान होगये..
जमीं अपनी बचाने. हम आसमां बन गये..
जलती ज्वाला सिनेमें रखके...
खून की होली खेल गये...
....... सरहद पर लड़ते लड़ते.
. यारों. हम.. कुरबान. होगये.. l
न मुलाक़ात हुई आख़री...दिलअजीजो से..
बनगये.. मुसाफिर .. लम्बे सफर पे निकल गये..
छोटे थे तो.. तारे आसमा मे .. ढूंढ़ते थे..
क्या पता था.. आज उसी आसमां के
चमकते सितारे बनगये... सरहद पर लड़ते.. लड़ते..
छू लिया था.. समुन्दर की लहेरो.. को दूर से..
ये सोचकर.. की.. कही.. डूब गये..
तो .. बहुत गहरे हो जायेंगे.. पर. क्या पता था..
एक दिन.. लड़ते लड़ते. अम्बर तक छू जायेंगे..