मुसाफिर हो यारों..
"जिंदगी " का..
मज़ा लीजिये...l
शिकवे गीले करके
न.. खुदको.. "दर्द " दीजिये..l
जो हुआ वो "क्यू" हुआ..
जो होरहाहे.. "क्यू " होरहाहे..
.इन छोटी छोटी.. बातोसे..
समय न. "व्यर्थ " कीजिये... l
बिना मर्जी के उनसे .. न डाली डाली..
न पता पता.. हिल पाता है.... l
फिर तू कौन होता है.. l
सबको आजमाने का हुन्नर क्यू रखता है.. l
जो आजमाएगा वो ऊपर बैठा है... l
बैठे बैठे सबकी खबर रखता है.l
मुसाफिर हो यारों..
.."जिंदगी " का
मज़ा लीजिये.. l