पिछले ७२ सालों से
मैं आज़ाद होता आया हूँ,
कभी बेवजह विवादों से,
कुछ हताश संवादों से,
किन्ही जटिल परिस्थितियों से,
चंद भ्रस्टाचारी सख्शों से,
और खास तो कुछ
संकुचित विचारधाराओं से ।
हां, कुछ बंधन अब भी हैं,
बेशक, अनबन अब भी हैं,
पर अब इन युवा भुजाओं को
ताकत बख्शने लगी है
मुक्त होते रहने की आदत,
आज़ाद होते रहने की फ़ितरत ।
हूँ, था, होता रहूंगा,
आपके स्वप्नों का आज़ाद भारत,
अभेद, अतुल्य, अखंड भारत,
अभेद, अतुल्य, अखंड भारत ।
- हार्दिक रायचंदा (१५ अगस्त, २०१९)