मैं तुम्हें बहुत ज़्यादा तो नहीं जानती लेकिन बहुत कुछ है जो शायद मैं जान गई हूँ या मेरा वहम ही होगा.. लेकिन तुम्हारे करीब से गुजरने पर कुछ मेरे पास छूट जाता है, कुछ रह जाता है जो तुम्हें मजबूर कर देता है वापस पलटकर देखने को। जब भी मैंने तुम्हारी आँखों में देखा है तो यही लगा कि शायद तुम कुछ कहना चाहते हो। मगर तुम्हारी खामोशी तुम्हारे जज़्बातों पर इतनी हावी रही कि तुम खामोश ही रहे।। और मैं भी अब तक हर उस बात से अंजान हूँ जिसमें कहीं ना कहीं मुझे मेरा वजूद नज़र आ ही जाता है। लेकिन इंतज़ार है उस पल का जब मेरे वहम को तुम हकीकत में बदल दोगे। या शायद ये बता दो की तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरा वजूद किस हद तक है।
#रूपकीबातें