ज़माने ने मुझे समझा नहीं है,
तभी तो कोई भी अपना नहीं है...
उसी की उम्र हूँ कैसे बताऊं,
जो मेरी उम्र का हिस्सा नहीं है...
मैं उसकी रूह की चादर हूँ लेकिन,
अभी उसने मुझे ओढ़ा नहीं है...
उतारा है बदन उसके लिए ही,
मगर उसने कभी पहना नहीं है...
मैं उसका क्या हूँ वो भी जानता है,
तभी उसने कभी पूछा नहीं है...
वही सुख है मेरा शायद वही है,
मुझे जो हर कहीं मिलता नहीं है...
वो अंदर से ही होगा बन्द शायद,
जो दरवाज़ा कभी खुलता नहीं है...®️