जब भी मैं लिखती हूं जैसे दिल की तितलियां अपने पंख खोल कर उड़ने को तैयार रहती है । मेरे शब्द जैसे मेरी ही कहानी बयान करते है , लिखने को तो बहुत कुछ होता है पर कभी कलम साथ नहीं देती तो कभी हालत साथ नही देते । पर फिर भी कभी - कभी जंग लगी हुई कलम को निकाल लेती हूं , जो दबी हुई ख्वाहिशें है मेरी उनको उड़ना सीखा देती हूं ।