रिश्ता वही है, दामन भि वहीं है...
फिर छूटता जा रहा है ऐसा
अहसास क्यूँ ???
तू मेरे साथ है फिर भी,
में अकेली रह गई ऐसा
महेसूस क्यूँ ???
मंजिल तो हमारी एक ही है
फिर साथ रहकर भी
दूर क्यूँ ???
चल फिर से वो पल जीते है!!!
खोल तेरी पलके देख,
में भी वही हूँ, तू भी वही है
हमदोनो के ये दो मोती
जो हम सजा रहे है...
बस सज चुके है...
चल फिर से अपनी पल जी ले...