*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब दिलों में नहीं रहता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब मेरे घर नहीं आता।*
*कोने में पड़ा अब भी वो खिलौना,*
*कहता है मुजसे कोई नहीं अब खेलता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब दिलों में नहीं रहता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब मेरे घर नहीं आता।*
*पुछ रहा था तितली का फिर पिंजरा,*
*वो दोस्त ऊडने का तरीका मुजे बताता।*
*खिड़की से झांकता एक यार मुजे मिला था,*
*आकाश के वो तारे अब कोई नहीं देखता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब दिलों में नहीं रहता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब मेरे घर नहीं आता।*
*ऊंचे रेत पर घर हम बनाते,फीर मिटा देते,*
*समंदर,वो लहरों में दोस्त नजर नहीं आता।*
*खाली पन्नों की आवाज,किताब सी रह गई,*
*उन किताबों को खोलकर कोई नहीं लिखता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब दिलों में नहीं रहता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब मेरे घर नहीं आता।*
*मां पुछती है ऊनके परोसें हुए* *खाने पर,*
*तेरे दोस्त बिना,खानें में सबर क्यु नहीं आता।*
*लौट के क्यु नहीं आता फीर* *बचपन,वो दोस्त?*
*दर्द को समजनेवाला दोस्त बार-बार नहीं आता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब दिलों में नहीं रहता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब मेरे घर नहीं आता।*
*ऊम्र की कैद में वक्त चला गया दोस्त की तलाशमे,*
*साया उनका हर चौराहे पर देखनेमें नहीं आता।*
*गुलशन के फुलों की पत्तियां अब खिलती नहीं,*
*वो दोस्त बहारों को लेकर वापस कभी नहीं आता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब दिलों में नहीं आता।*
*तुजे क्या कहुं अय दोस्त,*
*तु अब मेरे घर नहीं आता।*
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?? ? *भूषित शुक्ल...*