मैं हो गया !
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपने किसी से कुछ नहीं कहा, किसी ने आपसे कुछ नहीं कहा, और बस दो लोगों को आपस में बातें करते हुए देख - सुन कर आप फूल कर कुप्पा हो गए हों?
मैं चुपचाप खड़ा था। मेरे पास बंगाल से निकलने वाली एक पत्रिका के संपादक खड़े थे। तभी एक विद्वान पाठक ने उनसे कहा - " आप अपनी पत्रिका में प्रबोध कुमार गोविल को प्रबोध कुमार गोबिल क्यों लिखते हैं?"
संपादक महोदय ने तत्काल उत्तर दिया- "आपसे बदला लेने के लिए !"
वे हैरान होते हुए बोले- "हमसे बदला क्यों? हमने क्या किया है?"
संपादक जी बोले - "आप भी तो रोबिंद्र नाथ टैगोर को रवीन्द्र नाथ टैगोर लिखते हैं!
मुझे नहीं पता कि उन पाठक महाशय का क्या हुआ पर मैं तो फूल कर....