ज़िन्दगी नाम है कुछ लम्हों का
और उनमें भी वही इक लम्हा
जिसमें दो बोलती आँखें
चाय की प्याली से जब उट्ठीं
तो दिल में डूबीं
डूबके दिल में कहीं
आज तुम कुछ न कहो
आज मैं कुछ न कहूँ
बस यूँही बैठे रहो
हाथ में हाथ लिए
खुशियों की सौग़ात लिए
गर्मी-ए-जज़्बात लिए