जल है अनमोल
पानी बहता कल -कल- कल।
बचालो मुझे कहता है जल।।
वक्त गुजरता पल -पल- पल ।
लोटेगा नही बीता हुआ कल।।
जीवों से भरा है ये जल -थल।
बिन पानी होगा मरूस्थल।।
फूलों का बिछोना वृक्षों के तल।
बिन जल तो बस बचेगा मल।।
प्यास से व्याकुल हिरणों के दल।
सोचे ! पृथ्वी छोड़, अन्य ग्रह चल।।
सुरभित कैसे हों कमल-दल।
सूखे सभी सरोवर तल।।
जल है अनमोल ओ मानव खल।
पैसा कमाने में ना लगा सारा बल।।
हर मुश्किल का निकलेगा हल।
कर तो दिमाग में कुछ हल-चल।।
जोर से बंद करो टपके ना नल।
पानी सहेजो हर प्रतिपल।।
अच्छे कार्य में लगे ना टल
बुध्दि से मिटा जीवन के सल।।
सीमा शिवहरे 'सुमन'