तुम आए थे मेरे से मिलने
मैं खुश था
तुम्हे देखकर
सोचा जिंदगी को सुकून मिलेगा
मगर तुम्ह ने ही
अधूरी बात कर दी
मैं समझ नहीं पाया
सच कहूं तो अभी तक भी
संबल नहीं पाया
हां हो सकता है
मैं बुरा हूं
इस दुनिया कि नजर में
मगर तुम तो समझते हो
माना कि किसी के काम के नहीं
मगर तुम्हारे लिए तो तत्पर है
रिश्ता तो कुछ नहीं
मगर दोस्ती तो जिंदा है
क्या हो ओर क्या दिखते हो
ख़ामोशी से रिश्ता निभाती
जताने से कतराती हो
खुद तो हसकर जी लेती हो
मुझे मरने को छोड़ देती हो
चलो जो भी है
तुम से मिलकर अच्छा लगता है
बाकी का पता नहीं
सिर्फ़ तू सच्चा लगता है।
एन आर ओमप्रकाश हमदम।