Hindi Quote in Poem by Shirin Bhavsar

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*अब तुम मुझको माँ नही लगती*

रिश्तों के अथाह समंदर से
गुज़रने के पश्चात
जहाँ मैं खड़ी हूँ
जब तुम्हे वहाँ से देखती हूँ न माँ
सच कहती हूँ
तब तुम मुझको माँ नही लगती

इस जीवन सफ़र में
संवार कर सबको
बढ़ जाने दिया
बह जाने दिया तुमने
किन्तु थाम कर हाथ तुम्हारा
बहा ले जाएं कोई साथ तुम्हे भी
आँखों में जब तुम्हारी
वो उम्मीद का तारा देखती हूँ न माँ
सच कहती हूँ
तब तुम मुझको माँ नही लगती

नमन ,वंदन, स्तवन
के शब्दों से परे भी
कई शब्द होते हैं
जिन्हें सुनना चाहती हो तुम
ये महसूस करने लगी हूँ मैं
आँखों में स्नेहयुक्त लालसा
के साथ जब तुम्हें तकता पाती हूँ न माँ
सच कहती हूँ
तब तुम मुझको माँ नही लगती

अब भी हो तुम अटल
स्थान पर अपने
आँचल से अपने बुहार कर
पगडंडियों को राहें बनाती
दिशा ज्ञान कराती
देखती हूँ जब तुम्हें
नींव का पत्थर हो जाते न माँ
सच कहती हूँ
तब तुम मुझको माँ नही लगती

देहरी से तेरी कदम बाहर रख
हर रिश्ते को जीते हुए
जीवन के कई पड़ाव पार कर
जिस मुक़ाम पर हूँ न मैं
अब तेरी वेदना संवेदना की
समर्पण की , स्नेह की,स्पर्शो की
भागीदारिणी हो गई हूँ मैं
क्योंकि अब सिर्फ बिटिया
नही रही हूँ न मैं माँ
स्त्री हो गई हूँ
इसीलिए तो
सच कहती हूँ
अब तुम मुझको माँ नही लगती

शिरीन भावसार
इंदौर (म. प्र.)

Hindi Poem by Shirin Bhavsar : 111167379
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