## बोधकथा ##
*** शि क वण ***
------------------------------ मच्छिंद्र माली औरंगाबाद .
*?✨दिखता वैसा रहता नही✨?*

*एक साधु अपने शिष्य के साथ किसी अंजान नगर में घूमते हुए पहुंचे।रात बहुत हो चुकी थी इसलिए वे दोनों रात गुजारने के लिए किसी आसरे की तलाश कर रहे थे।* तभी शिष्यने अपने गुरु के कहने पर किसी के घर का दरवाजा खटखटाया।वो घर किसी धनी परिवार का था। *दरवाजे की आवाज सुनकर घरके अंदरसे परिवार का मुखिया बाहर निकलकर आया।*वह संकीर्ण वृत्ति का था. साधुके आसरा मांगने पर उसने कहा”मैं अपने घरके अंदर तो आपको नहीं ठहरा सकता,लेकिन तलघर में हमारा गोदाम है।*आप चाहें तो रात वहां गुजार सकते हैं*,किंतु सवेरा होते ही आपको यहां से जाना होगा।”

*साधु अपने शिष्य के साथ तलघर में रात गुजारने के लिए मान गये।तलघर के कठोर आंगन पर वे विश्राम की तैयारी कर ही रहे थे कि तभी साधु को दीवार में एक सुराख नजर आया।*साधुने सुराख को गौर से देखा और कुछ देर चिंतन के बाद उसे भरने में जुट गये।शिष्य ने सुराख को भरने का कारण जानना चाहा तो साधुने कहा–*”चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं,जैसी दिखती है।” दूसरी रात वे दोनों एक निर्धन किसान के घर आसरा मांगने पहुंचे।

*किसान और उसकी पत्नीने प्रेम व आदर पूर्वक उनका स्वागत किया।*इतना ही नही उनके पास जो कुछ भी रूखा-सूखा था, वह उन्होंने अपने मेहमान के साथ बांटकर खाया और फिर उन्हें रात गुजारने के लिए अपना बिस्तर भी दिया और स्वयं नीचे फर्श पर सो गये।*सुबह होते ही साधु व उनके शिष्य ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी बहुत रो रहे थे क्योंकि उनका बैल खेत में मृत पड़ा था। यह बैल किसान की रोज़ी-रोटी का सहारा था।*यह सब देखकर शिष्य ने साधु से कहा–*”गुरुजी, आपके पास तो अनेक सिद्धियां हैं, फिर आपने यह सब कैसे होने दिया?*उस धनी के पास तो इतना कुछ था, फिर भी आपने उसके तलघर की मरम्मत करके उसकी सहायता की.*जबकि इस गरीब किसान के पास कुछ ना होते हुए भी इसने हमारा इतना सम्मान किया.फिर आपने कैसे उसके बैल को मरने दिया।”

*साधु ने कहा–* चीज़ें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती है।

*साधुने अपनी बात स्पष्ट कि–* उस धनी के तलघर में सुराख से मैंने देखा उस दीवार के पीछे स्वर्ण का भंडार था।लेकिन वह धनी बेहद ही लोभी और कंजूस था। इस कारण मैंने उस सुराख को बंद कर दिया,ताकि स्वर्ण का भंडार गलत हाथ में ना जाएं।*जबकि इस ग़रीब किसान के घर में हम इसके बिस्तर पर आराम कर रहे थे।रात्रि में इस किसान की पत्नी की मौत लिखी थी और जब यमदूत उसके प्राण हरने आए तो मैंने उन्हें रोक दिया। चूंकि यमदूत खाली हाथ नहीं जा सकते थे*,इसलिए मैंने उनसे किसान के बैल के प्राण हरने के लिए कहा।

* यह सुनकर शिष्य अपने गुरु के समक्ष नतमस्तक हो गया।

*दोस्तों,* ठीक इसी प्रकार *दुनिया* हमें वैसी नहीं दिखती जैसी वह हैं, बल्कि *वैसी ऩज़र आती हैं जैसे हम है। अगर सच में कुछ बदलना है तो सर्वप्रथम अपनी सोच, कर्म व अपने आप को बदलने की कोशिश करों।*

*?ओम शांति?*

Marathi Story by मच्छिंद्र माळी : 111166420
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