#KAVYOTSAV -2
"क्या दूँ तुम्हें...?"
देना तो बहुत कुछ चाहती हूँ!
नीला आकाश
बसंती बयार
नदियों की कलकल
विस्तृत समन्दर
पहाड़ों की चोटियाँ
उस पर से फिसलती
बर्फ़ीली सर्दियाँ!
सूरज की किरणों की स्वर्णिम आभा
पूनम का चाँद
और पूरी आकाशगंगा
तारों से पूर्ण व्योम
और सारा ब्रह्मांड!
लेकिन मेरे पास तो कुछ भी नहीं!
रीते हाथ
सूखे सपने
मुरझाईं उम्मीदें
आँसूओं का सैलाब
आहों का अवसाद
बीते जीवन की कड़वाहट
और दर्द हज़ार!
ये कैसे दे दूँ तुम्हें?
तुम्हें एक एहसास दे रही हूँ!
जो है सिर्फ मेरा
तुम्हें अपना प्रेम दे रही हूँ
जिस पर अधिकार है सिर्फ तुम्हारा!
मेरा हृदय दे रही हूँ
जिस पर बन्धन नहीं किसी का!
अपनी सारी दुआएँ
तुम्हारे नाम कर रही हूँ!
तुम सूरज की तरह चमको!
चाँद की तरह उज्जवल हो
जीवन का प्रत्येक क्षण!
अपने उम्र का
हर पल दे रही हूँ
तुम जियो युग-युगांतर!
तुम सबके मन में अमर रहो
और प्रेम मेरा यूँ ही हो
मन में तुम्हारे
जन्म-जन्मांतर....!!
-सुमन शर्मा