*प्यास*
आज न जाने क्यों
फिर ये आलम हैं
बरसते है बादल
और हम प्यासे है
बैठे है इंतज़ार में
तन्हाइयो के साए हैं
यादे झँझोर रही है
आँखे बरस रही है
आकर छू जाते हो
हवाओ के झोको से
ख़ामोशी तोड़ते हो
दरिया की लहरों से
छोड़ कर तन्हा जमाने में
तनहा रहने नहीं देते हो
कभी हवा कभी लहर
कभी बुँदे बनकर छूते हो
ये कैसा इश्क़ है तुम्हारा
बन कर बादल मुझे
प्यार की बारिश में
भिगो जाते हो...
शिरीन भावसार
इंदौर (मप्र)