हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये
खुले आम आँचल न लहरा के चलिये
कोई मनचला गर पकड़ लेगा आँचल
ज़रा सोचिये आप क्या कीजियेगा
लगा दें अगर बढ़के ज़ुल्फ़ों में कलियाँ
तो क्या अपनी ज़ुल्फ़ें झटक दीजियेगा
बहुत दिलनशीं हैं हँसी की ये लड़ियां
ये मोती मगर यूँ ना बिखराया कीजे
उड़ाकर न ले जाये झोंका हवा का
लचकता बदन यूँ ना लहराया कीजे
हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये
खुले आम आँचल न लहरा के चलिये
~ गुलज़ार ❤️