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पुस्तक अंश
जब नुमाइश जाने का समय आया तो रोहन सबसे पहले कपड़े पहनकर तैयार हो गया। रास्ते भर फरमाइशों की लिस्ट सुनाता गया। नुमाइश में मेंढक वाले, रेल वाले झूले में झूला। डॉक्टर वाला सेट लिया, जीप ली और पुलिसवाला गुड्डा भी लिया। हाँलाकि उस गुड्डे के पास पिस्तौल नहीं थी पर कोई बात नहीं डंडा तो था। पेंसिलचोर को तो डंडे से ही भगा देगा। अब बारी थी कुछ खाने की। इसलिए सब चमनलाल के पंडाल में गये। वेटर आया तो मम्मी–पापा ने दही भल्ले का ऑर्डर दिया लेकिन रोहन बाबा को चाउमीन ही चाहिए थी। वेटर गया और छोटू से मेज साफ करने को कहा। छोटू मेज पोंछने आया तो विनीता का हृदय द्रवित हो उठा। छोटू, विनीता के रोहन से भी छोटा था और उसकी पुरानी कमीज दो जगह से फ़टी हुई थी। छोटू, रोहन के नये कपड़े देखकर ठिठका। ये ठिठकन एक अंतर्द्वंद भरी थी कि क्यों छोटू उस घर में पैदा नहीं हुआ जिसमें रोहन हुआ था। क्यों छोटू का बचपन पोंछा लगाने और जूठी प्लेटें धोने में भीगे। पर किस्मत को कोसने से क्या? कोसने से रोटी थोड़े ही मिलती है, रोटी तो पोंछा लगाने से मिलती है। इसलिए छोटू ने अच्छे से पोंछा लगाया। विनीता ने पूछा – “छोटू, तुम स्कूल जाते हो?” “स्कूल जाने के लिए पिरभु से अच्छी किस्मत लिखाकर लानी पड़ती है मेमसाहब, ऊ हम लिखाकर लाना भूल गये।” – छोटू का उत्तर उसकी आयु से बहुत बड़ा था। विनीता ने पूछा – “तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?” छोटू ने बताया – “अम्मा की मजूरी के पैसे छीनते हैं और दारू पीते हैं। हम और हमरी दीदी होटल पर जो भी कमाते हैं उससे दुई बखत की रोटी मिलती है।” अबकि उत्तर और भी तीखा था। छोटू वहाँ से चला गया दूसरी मेज पर पोंछा मारने। आँखों में आँसू भरे बैठी विनीता से मुकेश ने कहा – “उस बच्चे की वजह से अपने बच्चे का पिकनिक क्यों खराब कर रही हो? ये गरीबों के बच्चे हैं इनका कुछ नहीं होगा ये बस पोंछा लगाएँगे और बर्तन माँजेंगे। बल्कि मैं तो कहता हूँ कि इस देश का ही कुछ नहीं हो सकता।” फिर रोहन की ओर देखकर कहा – “तुम अच्छे से पढ़ाई करो और अमेरिका जाकर बसो। ये देश कभी आगे नहीं बढ़ेगा।”
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