तुम्हारे बाद, जिंदगी बदली नहीं ज़्यादा ..
बस कुछ चीजें, अब नहीं होती..
अब सुबह को गुड मॉर्निंग के मैसेज नहीं आते.. आंख खुलते ही हाथ अब मोबाइल पे नहीं जाते.. अब भी होती है दोपहर वैसी ही..
पर दोस्त अब खेलने मैदान में नहीं आते..
हां यह तो है, अब शाम जल्दी गुजर जाती है.. शहर के बाहर, उस नुक्कड़ वाली की चाय की खुशबू अब भी आती है..
पर अब कोई स्वाद नहीं रहा उस में..
अब रातें ना जाने क्यों लंबी सी लगने लगी हैं, पहले शायद छोटी हुआ करती थी,
तुम्हारी रोज रोज की प्रेम कहानियां बेमन सुनने पर भी रात जल्दी कट जाती थी..
हां कमरे की आबोहवा अब कुछ बदल गई है, अब उसमें सिगरेट के छल्ले भी नहीं बनते और जगजीत के गीत भी नहीं पूछते..
अब वह पड़ोसन भी शिकायतें लेकर नहीं आती जो अक्सर तेज़ गाने बजाने पर चीड़ जाती थी.. अब कोई हर बात पर, सब ठीक है यार, कह कर मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी पार्टी नहीं करता,
यूँही अब कोई मुझसे, क्या हो गया है? नहीं कहता..
ऐसा नहीं है कि मैं हंसता नहीं हूं..
बस अब उस हंसी में खुशी शामिल नहीं होती, सोचता रहता हूं कि तुम्हारे जाने से क्या बदल गया है? वक्त या मैं?
ढूंढता रहता हूं हरदम इन खाली हाथों को लेकर, दिनभर की भीड़ में और रातों के सन्नाटे में,
पर अब ना तुम मिलते हो और ना मैं l