सुनो रफुगर,
हमने सुना है कि
फ़टे कपड़ों को
तुम बुन देते हो
कुछ इस सफाई से
कि पता भी नहीं चलता
कपड़ा फटा भी था या नहीं ?
ऐ दोस्त रफुगर, मेरा भी
तुम कुछ पहले सा
बुन दोगे क्या ?
मुझसे भी फट गई है
एक पुरानी अजीज़
रिश्तों की चादर,
जिसे बरसों बुना था मैंने
खट्टी मीठी यादों के
महीन तारों से।
लेकिन न जाने कैसे
या शायद मेरी ही
लापरवाही से
एक खरोंच से
उधड़ गए तार,
तुम इन जज़्बातों के
महीन तारों को
फिर से जोड़ सकते हो क्या ?
ये रिश्ते की चादर फिर से
हो जाये एक जैसी, एक जान
तुम कुछ ऐसा
कर सकते हो क्या ?
कहो रफुगर,
हमने सुना है कि
फ़टे कपड़ों को
तुम बुन देते हो
बड़ी सफाई से...!
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