मेरे हुज़ूर ज़रा दिल की दासताँ समझो..
कभी कभी तो निगाहों की भी जुबाँ समझो...
कहीं पे चीख , कहीं दर्द , कहीं पर आहें..
खड़ा है चारों तरफ़ ग़म का कारवां समझो...
तुम्हारी चाह में भटका है उम्र भर कोई..
लुटा - लुटा सा मुहब्बत का ये जहाँ समझो...
तुम्हें तो सिर्फ समन्दर दिखाई देता है..
कभी तो हालते दरिया भी कद्रदाँ समझो...
तुम्हारे बिन तो न कुछ भी वज़ूद गुल्शन का..
चमन का दर्दे जिगर कुछ तो बागबां समझो....
हरेक बात जो दिल में है हमसे खुल के कहो..
नहीं हैं गैर हमें अपना राजदाँ समझो...?®️