नज़र हंसी न करे और दिल जवाँ न करे,
जला के शम्म-ए-तमन्ना कोई धुआँ न करें |
बस इक पल के लिए वो निग़ाह-ए-नाज़ उठे,
जला के ख़ाक़ मग़र दिल का आशियाँ न करे |
हर इक हाल में उल्फ़त की आबरू रख़्ख़े,
तड़प के कोई ग़म-ए-हिज़्र में फ़ुगाँ न करे |
जलाए उनकी मोहब्बत में आरज़ू के च़राग़,
रख़े यक़ीं को यक़ीं ही, कभी ग़ुमा न करे |
बहाऊँ अश्क़ में दामन-ए-यार पर ज़ख़्मी,
अग़र ये बात गवाँरा, वो महरबाँ न करे |