माली,लड़के और पेड़ !
रोकते हैं माली 
फिर भी चढ़ते हैं 
लड़के पेड़ पर !
स्नेह से देखते हैं पेड़ को 
उठाते हैं पैर 
चुटकी में लेकर 
डाली की फुनगी 
मसलते शरारत से 
उठता है साहस आहिस्ता 
छिपाते हैं कोटर में पेड़ के 
फेरता है पीठ तब माली 
जाकर उतरते हैं लड़के!
मौसम बदलते हैं 
खिलते हैं फूल 
बौराती हैं डालियाँ 
उड़ती है गंध आकाश से 
लौटते हैं घर को लड़के !