जिसमे है न दीवार न दर,
कैसे कहूँ मैं उसको घर,
जितनी धूप हो सहता है,
एक तन्हा चुप चाप शजर,
दुश्मन को भी दोस्त कहें,
अपना तो बस एक हुनर,
लोग घरों में कैद हुवे,
किसका है ये आखिर दर,
जब से आये शहरों में,
मिली न हमको अपनी खबर,
अमन कहाँ है शहरों में,
बच के तो "पागल गुज़र।
✍?"पागल"✍?