Hindi Quote in Story by Prabodh Kumar Govil

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दोस्त (लघुकथा)
सुबह - सुबह पार्क में एक युवक जॉगिंग करता हुआ भागा जा रहा था कि उसकी निगाह सड़क के किनारे चुपचाप बैठे एक बूढ़े पर पड़ी। युवक ने सीखा था कि जब जो काम करो,वही करो,और उसी में पूरा ध्यान दो। लिहाज़ा वो अपने रास्ते चक्कर काटता रहा।
हर चक्कर में उसका ध्यान बूढ़े पर जाता। युवक सोचता रहा कि आख़िर बूढ़े में ऐसी कौन सी बात है जो युवक का ध्यान खींच रही है। और तब युवक ने गौर किया कि बूढ़ा लगातार हंस रहा है।
युवक जब जॉगिंग कर चुका तब हांफता हुआ बूढ़े के पास आया और उससे बोला - देख रहा हूं कि आप लगातार हंसे जा रहे हैं, अपने बारे में कुछ बताइए।
बूढ़ा बोला - मेरा जन्म लगभग सत्तर साल पहले एक ऐसे मुल्क में हुआ जो अब नहीं है।
- कहां गया? युवक ने जिज्ञासा प्रकट की।
- अपने समीप के एक बड़े देश में मिल गया। बूढ़ा बोला।
- ये तो अच्छी बात है,आप हंसे क्यों जा रहे हैं? युवक ने बातचीत को नया मोड़ देना चाहा।
- मैं जब छोटा सा था,तो स्कूल में मेरी टीचर कहती थी, कि अपने देश से प्रेम करो, क्योंकि अगर देश नहीं होगा तो हम कैसे रहेंगे ! किन्तु अब देश नहीं है, फ़िर भी मैं हूं। बूढ़े ने अपने हंसने का कारण बताया।
युवक ने सिर खुजाते हुए कहा - हां, अपवाद स्वरूप आपके साथ ऐसा हो गया है, मगर फ़िर भी अब लगातार हंसते चले जाने से भी क्या हासिल?
बूढ़ा बोला - बुढ़ापे में दिमाग़ कमज़ोर हो जाता है,तब आदमी के हंसने-रोने पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रहता। और ये कह कर बूढ़ा ज़ोर ज़ोर से हिचकियां लेकर रोने लगा।
युवक ने बेचैन होते हुए कहा - अरे,अब रोने की क्या बात है?
सुबकते हुए बूढ़ा बोला - तुम इसलिए दौड़ रहे थे न कि बुढ़ापा तुमसे दूर रहे? कह कर वो फ़िर खिलखिला कर हंस पड़ा।
अब युवक ने कुछ नहीं कहा,क्योंकि वे दोनों अब दोस्त बन चुके थे। और दोस्तों के बीच बहस कैसी!

Hindi Story by Prabodh Kumar Govil : 111062407
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