तुम उन रास्तों पर
अब कहीं नहीं मिलते
जहाँ ख़ामोशी की जुबान
और अनसुनी बातों का
शोर हुआ करता था
पर आज भी सीने में
जमा हुआ तेरे वह
गर्म श्वास
सर्द होते जमे एहसासों को
एक छोटे से
गर्म धूप के टुकड़े सा होले से सहला जाता है
सच है ...
कुछ धुंधले पड़ते वाक्यात
यूँ कुदरत के बहाने
अपनी याद दिला जाते हैं ...