साधन (लघुकथा)
दुनिया के किसी कोने में एक अमीर आदमी रहता था। बेहद अमीर। उसके पास कितनी दौलत थी, ये तो उसके बैंक खाते से ही पता चल पाता, किंतु उसकी दौलत इतनी ज़रूर थी कि उसे दुनिया का एक बेहद अमीर आदमी कहा जा सके।
एक दिन उस अमीर आदमी ने अपनी संपदा के प्रबंधक को बुलाया, और कहा- "मेरे पास जितना भी सोना है वो तुम लेलो और मुझे कहीं से थोड़ा सा लोहा लाकर देदो।"
प्रबंधक संकोच से गढ़ गया। बोला-" मैं आपकी संपदा का प्रबंधक हूं, इसका उपभोक्ता नहीं, अतः मैं इतना सोना कैसे ले सकता हूं।मेरे लिए तो वो वेतन ही पर्याप्त है ,जो आप मुझे देते हैं,किन्तु क्षमा करें, मेरा वेतन इतना भी नहीं है कि मैं उसमें से किसी को कोई उपहार लाकर दे सकूं।परन्तु आप मुझे ये तो बताएं कि आप थोड़े से लोहे का करेंगे क्या?"
अमीर आदमी बोला- "जब मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगा,तब हो सकता है कि कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो आकर तुमसे ये जानना चाहे कि मैं कैसा था? तब तुम मेरी क़ब्र खोद कर कॉफिन बॉक्स में से मुझे निकाल कर उसे दिखा सको, इसके लिए मैं एक कुल्हाड़ी बनवा कर रखवा जाना चाहता हूं।"
प्रबंधक को बहुत अचंभा हुआ।वह बोला- "आपकी दूरदर्शिता बहुत महान है। किन्तु इतनी सी बात की इतनी चिंता?"
अमीर आदमी ने कहा- "मैंने अपने जीवन में यही सीखा है कि साध्य को पाना चाहते हो तो साधन को जुटाना सीखो, इसी से सफ़लता मिलती है।"