Hindi Quote in Film-Review by Prabodh Kumar Govil

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उन्नीस सौ साठ के बाद का दशक फ़िल्मों के लिए एक ख़ास ग्लैमर और रोमांस के साथ कर्णप्रिय संगीत का दौर था।
इस दौर में वैजयंती माला, नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी और नूतन को दर्शक शिखर पर स्थापित कर चुके थे।
इसी समय आगमन हुआ साधना का। लव इन शिमला, परख,एक मुसाफ़िर एक हसीना, मेरे महबूब, दूल्हा दुल्हन,राजकुमार, हमदोनों, वो कौन थी जैसी फ़िल्मों के साथ उन्होंने युवा दिलों पर अपना जादू चलाना शुरू कर दिया। इस समय तक मधुबाला, नरगिस के उतार के बाद वैजयंती माला नंबर एक हीरोइन के ताज के साथ सबसे आगे थीं।
किन्तु संगम फ़िल्म के बाद उनका समय भी जैसे दर्शकों की निगाह से उतरने लगा। उनकी बाद की फिल्में लीडर, आम्रपाली, सूरज, दुनिया, प्रिंस आदि वो पहले वाली बात पैदा न कर सकीं।
उधर साधना वक़्त, आरज़ू, मेरा साया, एक फूल दो माली जैसी फ़िल्मों के साथ ही दर्शकों की पहली पसंद बनने लगीं। फ़िल्म पत्रिका माधुरी ने उन दिनों जब पाठकों की राय के आधार पर "माधुरी नवरत्न" चुनना शुरू किया तो साधना को दर्शकों ने पहले क्रमांक के सर्वोच्च शिखर पर बैठाया।

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