*विदुर नीति - ८५*
*ईर्ष्यी घृणी न संतुष्टः क्रोधनो नित्याशङ्कितः।*
*परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदुः खिताः।।*
*अर्थ: ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा संकित रहने वाला और दूसरों के भाग्य पर जीवन-निर्वाह करने वाला – ये छः सदा दुखी रहते हैं।*
Robin rajput