दुश्मन जमाना
ना करते महोबत तो ये समझ ना आता,
प्यार के दुश्मन है हजार ये जान ना पाता.
किससे करता शिकायत जो हमे समज पाता,
इश्क कोई भूल नहीं, ये हजारों को समझाता.
किया है अलग इसकदर हमें इस जमानेने,
क्या खुब मजा आया तुजे मेरी हस्ती मिटाने में.
क्या मिला तुजे, महोबत में युं दीवार बनकर,
असर, आलम ए इश्क का तू क्या जान पाता.
भुलाए थे दिन, भुलाई थी रैना महोबत में हमने,
जान तक लगा दी थी, उन्हें जान बनाने में हमने.
मुस्किलात, तकलीफे, दर्द ये तेरे बसकी बात नहीं,
जमाने वैसे भी तू खराब है, बदनाम मेरी महोबत नहीं.
ना करते महोबत तो, शायद ये समझ ना आता,
प्यार के दुश्मन है हजार, बेशक ये जान ना पाता.
मिलन लाड, वलसाड.