ठिठुरती दीवारों में जलता था विश्वास,
नन्हे हृदय में था धर्म का उजास।
उम्र छोटी थी, पर साहस विराट,
इतिहास झुका, देख उनका प्रताप।। 1
ज़ोरावर की आँखों में सत्य की ज्योति,
फतेह की वाणी में वाहेगुरु की मोती।
ना झुके, ना डरे, ना मांगी शरण,
आस्था ही थी उनका सबसे बड़ा वरण।। 2
ईंटों में चुनी गई उनकी साँसें,
पर डिगीं नहीं आत्मा की आशाएँ।
मृत्यु भी ठिठकी उस क्षण अपार,
जब बाल हृदय बने धर्म की दीवार।। 3
मैं स्वयं से पूछता हूँ, इस युग में आज,
कहाँ खो गया वो तेज, वो नैतिक साज?
सुविधा के आगे झुकता हर विचार,
और बच्चों ने समझा दिया जीवन का सार।। 4
हे समाज, रखो उन साहिबज़ादों को स्मरण,
जिनका बलिदान सिखाता प्रेम, सत्य और चरण।
धर्म शब्द नहीं— चरित्र का प्रकाश है यही,
वीर बालों से सीखो— निर्भीक प्रेम ही सच्ची रही।। 5
— जतिन त्यागी (राष्ट्रदीप)