"रुह से रुह तक"
ख़ूबसूरत सा एक पल क़िस्सा बन जाता है,
जाने कब कौन ज़िंदगी का हिस्सा बन जाता है।
एक नज़र, एक हँसी, इक लम्हा-ए-नज़ाकत,
किसी से यूँ ही दिल का रिश्ता बन जाता है।
जो अजनबी सा लगता है पहली नज़र में,
उसी से रूह-से-रूह का वास्ता बन जाता है।
यूँ तो चलते हैं सभी अपने ही रस्तों पर मगर,
कोई साथ मिल जाए तो वही रास्ता बन जाता है।
कुछ मुलाक़ातें मुकम्मल हों न हों फिर भी,
कोई ज़िंदगी की किताब का सफ़ा बन जाता है।
कभी उम्मीद का इक नूर उतर आता है दिल में,
और मायूसियों में कोई फ़रिश्ता बन जाता है।
कितना नाज़ुक सा है ये एहसास, ऐ कीर्ति,
बिखरे अशआर से भी हर शेर ग़ज़लनुमा बन जाता है।
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️