हर आँसु के बाद मुसकुराई हूँ
खुद रूठी खुद आप ही मनाई हूँ ।
मगर फिर भी!!
मरने की बात कहकर जिन्दगी से न उकताई हूँ। निर्मेही हूँ! मोह नही मुझमे जाने कितनी बार सुना, सुनती आई हूँ। यह गुण है या अवगुण मेरा, रूठे चेहरों मे यह आजतक न समझ पाई हूँ।।
- Ruchi Dixit