मृत्यु से मुलाकात करते हैं
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आइए! फुर्सत में दिख रहे हैं,
तो कुछ काम ही करते हैं
फिर आज तो मुझे भी कोई काम नहीं है
तो चलो मृत्यु से ही मुलाकात करते हैं
और अपना समय पास करते हैं।
कुछ अपनी कहते, कुछ उसकी सुनते हैं
अपने जज्बातों का आदान-प्रदान करते हैं
शिकवा शिकायतों से अपना मन ही हल्का करते हैं।
अब इसमें इतना संकोच कैसा?
हम वो हैं, जो इतिहास लिखने का दम रखते हैं।
अरे भाई चिंता क्यों करते हों?
मृत्यु के नाम से थर-थर काँपते क्यों हो?
चलो तुम्हारी जान-पहचान संग यारी भी करा देते हैं,
अपने इस शुभचिंतक की एक कप चाय पीते हैं
समय रहा तो खा-पीकर वापस आते हैं
एक समय का ही सही, अपने घर का राशन बचाते हैं।
अब इतना भी क्या शर्माना?
आज का यही है नया जमाना,
जीवन हो या मृत्यु, हर किसी से रिश्ता निभाना
जिसने इतना भी न जाना,
उसके लिए आज भी है ज़माना वही पुराना,
जिसने मृत्यु को नहीं जाना
सच मानो उसका जीवन हुआ बेगाना।
कर लेता है जो मृत्यु से यारी
वो ही अपने जीवन में जाता अच्छे से पहचाना।
इसीलिए आओ! समय का उपयोग करते हैं
फुर्सत में जब आज हम-दोनों ही हैं,
संग-संग चलकर मृत्यु से मुलाकात करते हैं,
हम कैसे जीते हैं, सारी दुनिया को दिखाते हैं
यारी-दोस्ती का एक और अध्याय लिखते हैं,
हम समय का दुरुपयोग नहीं करते,
उसका सदुपयोग करने के लिए हम जाने जाते हैं।
भेंट मुलाकात में ही समय बिताते हैं।
मृत्यु को भी नया आइना दिखाते हैं,
अपने जलवे का नमूना आज मृत्यु को भी दिखाते हैं
अरे यार तू इतना डरता क्यों है?
लगता है तू मृत्यु से बहुत डरता है?
जबकि डरना तो उसे चाहिए,
हम उससे मिलने नहीं, उस पर एहसान करने चल रहे हैं।
हमारे आवभगत का सौभाग्य पाने का
उसे एहसान मानना चाहिए,
हमारे यार को भी हमारे जैसा ही सम्मान देना है,
यह बात मृत्यु को भी गाँठ बाँध लेना चाहिए,
जब हम मृत्यु से तनिक भी नहीं डरते
तो तुझे भी बिल्कुल नहीं डरना चाहिए,
समय-समय पर इनसे-उनसे
भेंट मुलाकात कर समय काटते रहना चाहिए,
मृत्यु के साथ मिलकर अपना समय
हंसते -मुस्कराते हुए पास करना चाहिए,
कुछ और नहीं तो कभी-कभार
उस पर एहसान करते रहना चाहिए,
इसीलिए मृत्यु से मिलते रहना चाहिए।
सुधीर श्रीवास्तव