आनंद
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आनंद क्या है?
हर किसी के लिए इसके अलग-अलग मायने हैं।
जो इसे जिस भाव में लेता है , आत्मसात करता है,
वो वैसे ही आनंद में जीता है।
कोई अपने सुख, तो कोई औरों के सुख में,
कोई सेवा भाव, तो कोई समाज, राष्ट्र की सेवा में
आनंद का सुख पा जाता है।
इतना ही नहीं कुछ ऐसे भी हैं
जो दीन-दुखियों, रोगियों, असहायों की
सेवा से असली आनंद उठाते हैं,
तो कुछ उन बुजुर्गो का सहारा बन
अपना जीवन धन्य बनाते हैं,
जिनसे उनके अपने ही मुँह मोड़ लेते हैं।
यह दुनिया बड़ी अजीब है साहब
यहाँ तरह-तरह के अपराध करने में भी
असीम आनंद उठाएं जाते हैं,
नकली चोले की आड़ में भी
नव आनंद खोजे जाते हैं,
और तो और
अब तो आनंद भी बाजारीकरण का
शिकार होते दिख ही जाते हैं।
इतिहास गवाह है कि आनंद का अनुभव
निज अंर्तमन से महसूस होता है,
जिसे शब्दों में ढालने का हर प्रयास
सिर्फ अधूरा-अधूरा सा आभास देता है,
और उलझाकर छोड़ देता है।
सुधीर श्रीवास्तव