दस्तक
कभी-कभी तन्हाइयों में,
अंधेरी रात की गहराईयों में,
जब याद तेरी सताती है,
जुदाई तेरा बस रुलाता है,
मैं खुद को समझाती हूँ,
दिल में उसे छुपाती हूँ,
फिर ख्वाहिशें करवट लेती हैं,
हसरतें मुझे जगाती हैं।
मैं उन्हें बहलाती हूँ,
आँखें बंद कर सो जाती हूँ,
फिर तमन्ना शरगोशी करती है,
चाहत मुझे तड़पाती है,
बंद आँखें खुल जाती हैं,
मन भाग-भाग उठता है,
तुम्हारे दर पे दस्तक देता है,
तुम उस दस्तक को सुनते हो,
क्या, तुम उस दस्तक को सुनते हो..???
मधु शलिनी वर्मा