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**नहीं है अर्जुन की धनुषधार,
नहीं है रावण सा अभिमान।
नहीं है भीम का गहन विचार,
नहीं है हनुमान का अद्भुत पराक्रम महान।
नहीं है कर्ण का कवच और कुंडल,
नहीं है भीष्म की प्रतिज्ञा अमर।
नहीं है द्रोण का शस्त्र-कौशल,
नहीं है शकुनि सा छल भरकर।
पर मेरे पास है एक हथियार,
जिसकी धार है सबसे प्रखर।
न तलवार, न बाण, न ढाल,
यह कलम है मेरा सबसे बड़ा संबल।
कलम से जग को बदल दूँगा,
अन्याय को धूल में मल दूँगा।
अंधकार में उजियारा भर दूँगा,
हर दिल में विश्वास जगा दूँगा।
यही है मेरा असली शस्त्र,
यही है मेरी पहचान।
कलम ही है मेरी शक्ति,
कलम ही है मेरी जान।
यही है मेरी तलवार!**