इश्क में बूढी होने होने वाली औरतें समय से पहले बहुत पहले बूढी हो जाया करती हैं
औरत जब इश्क करती है, तो वह कोई कोना नहीं छोड़ती। वह अपनी दुनिया का नक़्शा ही बदल देती है। अपने सपनों को, अपनी प्राथमिकताओं को, अपनी इच्छाओं को किसी और की मुस्कान में समेट देती है। जब वह प्यार में होती है, तो हर सुबह किसी नाम की याद से होती है और हर रात उस आवाज़ की प्रतीक्षा में ढलती है।
यह इन्तज़ार ही वह ज़हर है जो धीरे-धीरे उसकी रगों में उतरता है, और फिर उस पर उम्र का बोझ डाल देता है—वो उम्र जो कोई कैलेंडर नहीं माप सकता।
कहते हैं, प्यार में सबसे सुंदर चीज़ उम्मीद होती है—कि कोई है, जो समझता है, जो लौटेगा, जो थामेगा। लेकिन जब वो उम्मीद टूटती है, तो वो बालों में नहीं, आत्मा में झलकती है।
ऐसी औरतें समाज के हिसाब से जवान ही होती हैं—शायद 28, 35 या 40 की। लेकिन उनके अंदर एक बहुत पुराना मन बसने लगता है, जो थका होता है, शांत होता है, और कभी-कभी बहुत अकेला भी।
उनके चेहरे की हँसी वैसी ही होती है, पर उसकी धुन में एक सूनापन बस जाता है। वो हँसती हैं, पर अब खुद को नहीं बहलातीं, किसी और को बहलाने के लिए हँसती हैं।
कई औरतें इश्क में इस भरोसे पर जीती हैं कि कोई है, जो उन्हें देख रहा है, महसूस कर रहा है, याद कर रहा है। वे एक काल्पनिक साथी के साथ जीवन की कठिनाइयाँ काट लेती हैं। यह ‘अदृश्य साथ’ ही उन्हें कुछ वक्त के लिए जवान रखता है, लेकिन जब सालों बाद उन्हें अहसास होता है कि वह साथ तो बस उनके ही मन की उपज थी—तब उनके अंदर का ‘युवापन’ अचानक बिखर जाता है।
कभी जिन कदमों पर गुलाब बिछे थे, अब वहां कांटे भी चुभते नहीं—क्योंकि अहसास की संवेदनशीलता ही खत्म हो चुकी होती है।
कुछ औरतें इश्क में कुछ ज्यादा ही जी लेती हैं—हर पल में वो इतनी डूब जाती हैं कि मानो वो ज़िंदगी वहीं रुक जाए। वे खतों में अपने नाम के साथ उसका नाम जोड़ देती हैं, सपनों में बच्चों के नाम सोच लेती हैं, दुपट्टे की सिलवटों में उसका चेहरा छुपा लेती हैं। जब यह सब टूटता है, तो उनका टूटा हुआ मन हर आने वाले पल से मुँह फेर लेता है।
ये औरतें जल्दी बूढ़ी हो जाती हैं क्योंकि उन्होंने इश्क में एक पूरी उम्र पहले ही जी ली होती है। उन्हें आगे की ज़िन्दगी में अब कुछ नया नहीं चाहिए होता, क्योंकि वो सब उन्होंने पहले ही जी लिया—या खो दिया।
समाज इन औरतों को कभी समझ नहीं पाता। जो औरतें खुलकर प्यार करती हैं, टूटकर चाहती हैं, उन्हें समाज या तो 'कमज़ोर' मान लेता है या 'बेवकूफ'। कोई ये नहीं समझता कि वे अपनी आत्मा के स्तर पर कितनी परिपक्व हो चुकी होती हैं।
वो अकेली हो जाती हैं, क्योंकि न तो उन्हें कोई साथी मिला और न कोई ऐसा जो उनकी चुप्पियों को पढ़ सके। और यह अकेलापन ही उन्हें समय से पहले बूढ़ा कर देता है।
लेकिन इन औरतों के अंदर एक बात और होती है—वो अपने टूटने को भी सुंदरता से जीना जानती हैं। वे अपने घावों को कविता बना लेती हैं, अपने आँसुओं को मोती की तरह सजा लेती हैं। वे दूसरों को प्यार करना नहीं छोड़तीं, भले खुद को भूल जाएं। यही उन्हें भीड़ में सबसे अलग, सबसे गहराई वाली औरत बनाता है।
वे बूढ़ी दिखें या नहीं, लेकिन वे अनुभवों की ऐसी खदान होती हैं, जिनमें सैकड़ों प्रेम कहानियाँ छिपी होती हैं—कहानी नहीं बनीं, लेकिन इतिहास ज़रूर बन जाती हैं
इश्क में बूढ़ी हो जाने वाली औरतें कोई कमज़ोर नहीं होतीं। वे बस उन लोगों से अलग होती हैं जो जीवन को सतह पर जीते हैं। उन्होंने गहराई को छुआ होता है—चाहे वह प्रेम हो, पीड़ा हो या प्रतीक्षा।
और शायद यही गहराई उन्हें समय से पहले बुना हुआ एक रूहानी सौंदर्य दे देती है—जो दिखता नहीं, लेकिन महसूस ज़रूर होता है।