समीक्षा
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ईश्वर में आस्था रखते हुए, सदा खुश रहते तथा जीवन में सदाचार अपनाते हुए जो आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं, उसी का जीवन सार्थक होता है-
माणक तुलसीराम गौड़
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सार्थक जीवन जीने के लिए पहली और आधारभूत शर्त यह है कि हम पहले मानव बनकर जीएँ तथा सभी प्राणी मात्र में उस ईश्वर का वास देखें जो सबका नियंता है।
हम हमारे पूर्वजों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलते हुए, उन परम्पराओं का पालन करते हुए, हमारी संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए उन संस्कारों में जीने की आदत डालनी है जिन्हें हमारे पूर्वजों ने संभालकर रखा। वे स्वयं मिट गए, परंतु हमारी संस्कृति और संस्कारों को नहीं मिटने दिया। क्योंकि ये संस्कार ही हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं तथा हमारे अंदर नित नई ऊर्जा का संचार करते हैं।
ऐसा कहना है श्री किशोर शर्मा ‘सारस्वत’ का अपनी पुस्तक ‘सकारात्मक सोच में निहित है सार्थक जीवन’ में।
श्री सारस्वतजी का मुझ पर असीम स्नेह रहा है। जिन्होंने मुझे अपना कीमती विस्तृत उपन्यास ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ भेजा जिसकी समीक्षा मैंने हाल ही में की है। उस उपन्यास तथा समीक्षा की साहित्य जगत में भूरि-भूरि प्रशंसा हुई, जिसका सारा श्रेय उस अमूल्य कृति को ही है।
इस समीक्षित पुस्तक को मैंने बड़े ही मनोयोगपूर्वक पढ़ा और पाया कि जिनका मन स्थिर नहीं रहता, जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाता, नया कार्य प्रारंभ करने में मन हिचकिचाता है, सदैव असफल होने का डर सताता है, असफलता पर मन मुर्झाता है, जीवन जीने में रस का अभाव रहता है, मन में उत्साह नहीं रहता, मन पर हमेशा दबाव या तनाव रहता है, किंकर्तव्यविमूढ़ होकर जिंदगी जीते नहीं बल्कि जैसे-तैसे जीवन के दिन काट रहे हैं, मन में हीनभावना ने घर कर लिया है तो इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें।
यह केवल पुस्तक ही नहीं बल्कि उपर्युक्त रोगों-मनोरोगों की रामबाण औषधि है, ऐसा मेरा मानना है।
स्वयं लेखक के शब्दों में- ‘‘सकारात्मक सोच एक ईश्वरीय देन है, जो इंसान को जिंदगी बदलने के लिए निःशुल्क मिलती है।’’
इस पुस्तक में सैंकड़ों ऐसे उद्वरण दिए गए हैं जिन्हें पढ़ना-समझना और इस पुस्तक में संकलित करने के लिए लेखक ने विद्वानों, साहित्कारों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, उद्योगपतियों, सेना के जनरलों, निवेशकों तथा सफल अन्य व्यक्तियों के वक्तव्यों को खोजकर इस पुस्तक में सम्मिलि करने के लिए कितनें प्रयास किए होंगे, देखकर दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है।
देखिए, कुछ उदाहरण- कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान देने पर अजुर्न भगवान श्री कृष्ण से कहता है- ‘‘न दैन्यं न पलायनम्’’ अर्थात् न कभी अपने भीतर दीनता यानी हीनता का, छोटेपन का भाव आने दूँगा, न युद्ध क्षेत्र से पीठ दिखाकर भागूँगा।’’
युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने कहा है- ‘‘सदैव ठंडा करके खाना चाहिए, चाहे वह भोजन हो या सूचना।’’
किसी सद्पुरुष ने सच ही कहा है- ‘जिंदगी काँटों का सफर है, हौसला इसकी पहचान है, रास्ते पर तो सभी चलते हैं, जो रास्ता बनाए वही इंसान है। '
‘अपना महत्व समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्वपमर्ण व्यक्ति हो।’
कार्लाइल
‘कमजोर न बनें, शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें कि भगवान हमेशा आपके साथ है।’
‘महान उपलब्धियाँ कभी भी आसानी से नहीं मिलती और आसानी से मिली उपलब्धियाँ महान नहीं हो सकती।’
बालगंगाधर तिलक
‘अकसर हमें थकान काम के कारण नहीं, बल्कि चिंता, निराशा और असंतोष के कारण होती है।’
डेल कार्नेगी
‘कमजोर व्यक्ति हमेशा सुअवसरों का इंतजार करते हैं, जबकि निर्भीक व्यक्ति इन्हें बनाते है।’’
ऑरिसन स्वेट मॉडन
‘सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही न आने दे।’
‘इंतजार करने वालों को उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है।’
पूर्व राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
‘जिंदगी में सब कुछ छोड़ देना, लेकिन मुस्कान और उम्मीद मत छोड़ना।’
स्वामी विवेकानंद
‘संसार में सबसे सुखी वही व्यक्ति है जो अपने घर में शांति पाता है।’
गेटे
‘कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है।’
महान स्वतंत्रता सैनानी वीर सावरकर
‘कठिन समय में कायर बहाना ढूँढ़ते है, जबकि बहादुर व्यक्ति नया रास्ता खोजते है।’
सरदार बल्लभ भाई पटेल
‘शुरुआत करने के लिए महान होना जरूरी नहीं है, लेकिन महान होने के लिए शुरुआत करना जरूरी है।’
सेंट फ्रांसिस
‘कल्पना के बाद कर्म जरूर करना चाहिए, क्योंकि सीढ़ियो को देखते रहना ही काफी नहीं, उस पर चढ़ना भी जरूरी होता है।’
वैंस हैवनेर
‘यदि आपको अपनी छवि की चिंता है तो अच्छे लोगों की संगति करें। बुरी संगति से अकेले रहना अच्छा है।’
जॉर्ज वाशिंगटन
‘जे न मित्र दुःख होहि दुखारी।
तिन्हहि बिलाकत पातक भारी।।
अर्थात् जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है।’
गोस्वामी तुलसीदासजी
‘जिसके पास स्वास्थ्य है, उसके पास आशा है तथा जिसके पास आशा है उसके पास सब कुछ है।’
एक अरबी कहावत
‘दुनिया के छः सबसे अच्छे डॉक्टर हैं धूप, आराम, व्यायाम, आहार, आत्मविश्वास और मित्र। इन्हें सभी अवस्थाओं में बनाए रखें और स्वस्थ जीवन का आनंद लें।’
स्टीव जॉब्स
‘मेहनत इतनी कर की उसमें तुझे कभी कोई कमी न लगे, खुद को इस काबिल बना की हर शख्स सिर्फ तुम जैसा बनने की चाह रखे।’
अज्ञात
इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास कार्य-संपादन के लिए मनुष्य की भीतरी ऐसी दो शक्तियाँ हैं जो हताशा और निराशा को उभरने का अवसर नहीं देती। जब इंसान कार्य को बोझ न समझकर उसमें आनंद का अनुभव करने लगता है तो उसकी मानसिक और शारीरिक शक्ति का विकास स्वयमेव होने लगता है। इस पुस्तक का यही भाव है।’
किशोर शर्मा ‘सारस्वत’
हीन भावना ही चिंता और निराशा का जनक है। क्योंकि जब इंसान अपनी आंतरिक शक्ति को खो देता है तो उसे हर काम को पूरा करने में जटिलता नज़र आने लगती है। यह नकारात्मक भाव शरीर की क्रियात्मक ऊर्जा को क्षीण कर देता है। बिना परिश्रम किए ही उसे थकान का आभास होने लगता है। यह स्थिति न केवल इंसान की मानसिक सोच का पतन करती है, बल्कि शारीरिक तौर पर भी उसे अक्षम बना देती है। हीन भाव से कैसे मुक्ति पाई जाए, इसके कुछ उपाय मैंने इस पुस्तक के माध्यम से देने का प्रयास किया है।
पृष्ठ 8
इंसान भावनाओं के वश होकर जीता है। थोड़ा सा सुख मिला, तो खुशी का ठिकाना नहीं और जिंदगी में दुःख आया तो सहनशीलता नहीं। इंसान सारी उम्र भर जिंदगी के इस ज्वार-भाटा में डोलता रहता है। सरल और सरस जिंदगी जीने का कभी प्रयास ही नहीं करता है। असल खुशी की अनुभूति वही इंसान कर पाता है जो सुख और दुःख को जिंदगी के तराजू में एक समान रखकर जीने का प्रयास करता है।
पृष्ठ 9
इस प्रकार यह पुस्तक उन लोगों के लिए अमृतपान की तरह है जो नये काम प्रारंभ करते समय घबराते हैं, मन से कमजोर हैं, जिनमें साहस की कमी है, मन उदास, हताश और निराश रहता है, मन में अवसाद भरा है, जिन्हें जीवन निरर्थक लगता है तथा जो हीन भावना से ग्रसित है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि उन्हें इसमें पूर्ण समाधान मिलेगा।
आज के आपाधापी भरे और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में इस तरह की पुस्तकों की बहुत आवश्यकता है।
मैं तो यहाँ तक कहना चाहूँगा कि ऐसी प्रेरणादाई तथा सकारात्मक दृष्टिकोण वाली पुस्तक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होनी चाहिए। जो मन की दीनता, हीनता और मलीनता को त्यागकर विजयीभाव लिए सिंह की तरह स्वाभिमान के साथ जीना सिखाती है, श्री किशोर शर्मा ‘सारस्वत’ की पुस्तक ‘सकारात्मक सोच में निहित है सार्थक जीवन’।
साहित्यजगत, विद्यार्थी और नौजवान या यों कहें कि हर पीढ़ी के जन इस पुस्तक का स्वागत करेंगे और इससे अधिक से अधिक लाभ उठाएँगे, ऐसा मेरा मानना है।
मैं श्री किशोर शर्मा ‘सारस्वतजी’ को ऐसी शानदार पुस्तक लेखन के लिए हार्दिक अभिनंदन करता हॅंऔर आशा करता हूॅं कि भविष्य में भी ऐसी शानदार पुस्तकें लिखकर मानव मात्र का कल्याण करेंगे, ऐसी मंगलकामनाएँ करता हूँ।
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पुस्तक का नाम - सकारात्मक सोच में निहित है सार्थक जीवन
विधा - निबंध
निबंधकार-
किशोर शर्मा ‘सारस्वत’
मो. नं. -
90502 23036
समीक्षक-
माणक तुलसीराम गौड़
मो. नं.- 87429 16957
प्रकाशक- के. वी. एम.
प्रकाशन वर्ष - 2023
मूल्य - 299 / मात्र
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